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विस्तार : सीक्रेट ऑफ डार्कनेस (भाग : 07)





अचानक हल्के से हवा का शोर उठा, उन सबके जिस्मों में सिरहन दौड़ गयी। किसी पूरी तरह बंद कक्ष में इतनी तेज हवा का चलना उनकी रूह को कँपा दे रहा था। सबने सब उपाय कर के देख लिए थे पर अब कोई रास्ता न पाकर आँखों में बेबसी लिए खड़े थे। शिवि, जय को इस तरह तड़पकर मरते देख कुंद हो गयी थी। उसकी साँसे तो चल रही थी परन्तु वह अंदर ही अंदर घुट-घुटकर मरती जा रही थी, उसकी बड़ी नीली आँखे, उबलकर लाल हो गयी थी। अमित-केशव की घिग्घी बन्ध गयी थी, आँसू पथराई आंखों से बस चुपचाप उन सबको देख रही थी। अमन अपना सिर पीटने को तैयार था। शिल्पी को लग रहा था विस्तार के साथ भी यही हुआ होगा वह किसी तरह अपने हृदय को समझाने का प्रयास कर रही थी ताकि अपने बचे हुए दोस्तो की मदद कर सके।

अचानक हवा इतनी अधिक ठंडी हो गयी कि उन्हें अपने जिस्म में सैकड़ो कांटे चुभने सा लगा। अंधकार गहरा होता जा रहा था, शरीर धीरे-धीरे करके साथ छोड़ रहा था। कक्ष में चट-चिट-खट की तेज ध्वनि गूँजने लगी। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कई बिखरी हुई हड्डियों के टुकड़े आपस में जुड़कर एक हो रहे हों, खटरर-खट की आवाज के साथ ये आवाज आनी बन्द हो गई। केशव जोर से चीखा और सब उस जगह से भागने की कोशिश करने लगे।

"यह व्यर्थ प्रयास बन्द कर दो!" हवा में सर्द स्वर गूंजा। हड्डियों के आगे बड़ी बड़ी काली आंखे लिए वह, उनकी ओर बढ़ा। आवाज बहुत सर्द थी, यह स्वर सुनते ही सबकी रूह जैसे जम गई वे चाहकर भी अपनी जगह से हिल नही पा रहे थे।

हड्डियों के आगे खड़ा वह 'अज्ञात' आगे बढ़ा। उसके जिस्म पर स्याह रंग के वस्त्र लहरा रहे थे, आंखे बिल्कुल काली, हाथो से स्याह ऊर्जा मुक्त करते, जमीन से कुछ फ़ीट ऊपर चलते हुए वह आगे बढ़ रहा था। उसी के शक्तियों से ये बिखरी हड्डियां जुड़कर मानवाकार धारण कर खड़ी थी।

"त..त..तुम कौन हो?" अमन हकलाते हुए पूछा। हड्डियों के ढांचे को चलते देख उसके पैर कांप रहे थे। उस रहस्यमयी शख्स ने उसे कोई उत्तर नही दिया, उसके अधरों पर उससे भी अधिक रहस्यमयी मुस्कान उभरी और इसी के साथ हड्डियों के ढांचे रूपी जीव तेजी से 'अमन शिल्पी शिवि आँसू केशव अमित' के ओर बढ़ने लगे, केशव चाहकर भी अपने स्थान से नही हिल पा रहा था, यह दृश्य देखकर उसका कलेजा मुँह के रास्ते बाहर आने को बेकरार हो रहा था। अमित के सामने भी हड्डियों का एक ढाँचा खड़ा था, जिसका शरीर कई टूटी फूटी हड्डियों और पसलियों के मेल से बना था, उसकी खोपड़ी लटकी हुई थी, अमित की हालत गीली हो चुकी थी और उसका पैंट भी।

आँसू अब भी बस चुपचाप घूरे जा रही थी, उसके मन में डर था पर वह अब भी उसे जताना नही चाहती थी। शिल्पी उन सबको बचाना चाहती थी पर उसके पांव हिल तक न रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे वे जमीन से जुड़ गए हो। अचानक उसका ध्यान उस रहस्यमयी जीव की ओर गयी उसका सम्पूर्ण जिस्म काले लिबास से ढका हुआ था, हवा में बाल लहरा रहे थे अंधेरे के कारण कुछ भी स्पष्ट नजर नही आ रहा था, परन्तु एक क्षण को लगा जैसे वह उसे जानती हो। शिवि तो जय को तड़पकर मरते देख ही जड़ हो गयी थी, वह जड़वत आँखों से हड्डियों के उन ढांचों को घूरे जा रही थी। अमन अपने दोस्तों की इस हालत का जिम्मेदार स्वयं को मान रहा था अब उसके चेहरे पर भय से अधिक आत्मग्लानि के भाव  दिखाई दे रहे थे।

अचानक उनमे से एक जीव केशव की ओर बढ़ा, वह उसके बिल्कुल पास पहुंच गया। केशव में विरोध करने की क्षमता नही थी, इस प्रकार के जीव को देखकर वह अपनी धड़कनों पर काबू नही रख पाया। उसके धड़कनों की गति अचानक से बहुत अधिक बढ़ गयी, उस हड्डियों के ढाँचे ने उसे देखा अगर वह हड्डियों का ढांचा नही होता तो निश्चय ही उसके चेहरे पर क्रूर शैतानी मुस्कान होती अगले ही पल उसने अपनी नुकीली हड्डी के टुकड़े को उसके सीने में बाई ओर पेवस्त कर दिया। केशव दर्द से बिलबिला उठा, उसकी जोरदार चीख गूँजी दिल की बढ़ती धड़कने अब रुक चुकी थी पर वह दरिंदा और उसकी दरिंदगी अब भी न रुकी थी। वह अपने शरीर से दूसरी हड्डी निकालकर केशव के मृत शरीर से त्वचा उतारने लगा और हड्डियों को तोड़-तोड़कर कई टुकड़े करते गया। जय का रक्त अभी पूरी तरह नही सूख पाया था केशव का रक्त बहता हुआ उस रक्त से मिल गया। उस ढांचे के पूरे शरीर पर केशव का रक्त लगा हुआ था। वह रहस्यमयी स्याह जीव जमीन से ऊपर हवा में खड़े होकर इस विभत्स दृश्य का आनन्द उठा रहा था, उसके वस्त्र हवा में लहराते रहे थे। वहीं दूसरा शैतानी जीव जो कि हड्डियों के ढांचे से ही बना था वह बाकियों की ओर बढ़ा। अपनी ओर बढ़ते देख अमित जमीन पर गिर गया और तेजी से सरकने की कोशिश करने लगा, आँसू अब भी अपलक इस दृश्य को देखे जा रही थी और शिवि अभी भी जड़वत अवस्था मे थी, उसे तो यह खबर भी नही रही कि अब उसकी मृत्यु भी उसके सिर पहुँच कर तांडव कर रही थी।

गिरते-पड़ते सरकते हुए अमन केशव की लाश के पास पहुँच गया जहाँ उस विभत्सक दृश्य को देखकर उसके होश उड़ गए। शिल्पी का पूरा ध्यान उस रहस्यमयी शख्स की ओर था जो अपनी बड़ी बड़ी काली आँखों से इस वीभत्स दृश्य को देखकर आनन्द उठा रहा था।

जमीन पर गिरा हुआ अमित अपने दोनों हाथों के सहारे पीछे की ओर सरकता जा रहा था, वह हड्डियों का ढांचा उसकी ओर बढ़ता ही जा रहा था। अमित के हृदय की धड़कनें बढ़ती जा रही थी उसने अभी अभी अपने बेस्ट फ्रेंड की मौत देखा था। अपनी ऐसी मौत के बारे में सोचकर ही अमित के रोएं खड़े हो गए, उसका शरीर बुरी तरह कांप गया। वह अपनी पूरी गति से पीछे की ओर भाग रहा था पर वास्तव में अब तक वह कुछ इन्च ही सरका हुआ था, वह सरका अपनी पूरी जान लगाकर वहां से भागना चाहा पर अब उसके पीछे दीवार आ चुकी थी। उस रहस्यमयी जीव के आगे बढ़ने से खट-खटरर की आवाज आ रही थी वह अमित पर झपटा और अगले ही पल उसके कमर से दो हिस्सों में विभक्त कर दिया। अमित की जोरदार ठंडी चीख से पूरा कक्ष थर्रा उठा उसके जिस्म से फच्च-फच्च लहू की धार निकलने लगी पर इस दैत्य ने भी उसके मृत शरीर पर कोई रहम नही किया और उसके शरीर के कई टुकड़े कर कमरे में फेंकता गया। अमित के जिस्म से निकला लहू जय और केशव के लहू में आकर मिलने लगा। कक्ष का यह कोना रक्त से भर चुका था। आँसू पथराई आँखों से यह सब होते देख रही थी उसका हृदय जोर-जोर से चीख रहा था परन्तु मुख उसका साथ नही दे रहा था वह खुद को संभालने की बहुत कोशिश करती है। उसके पैरों के नीचे लहू आ गया था जो धीरे धीरे पैरों से होते हुए उसके शरीर पर ऊपर चढ़ता जा रहा था अचानक उसे होश आया वह जोर से चीखी अमन बेबस निगाहों से उसकी ओर देखा। आँसू नीचे गिर गयी और बुरी तरह से खून में जल गई, वही पास शिवि भी खड़ी थी, अमन सरककर आँसू के पास पहुँचना चाहता है और शिल्पी अब भी उसी रहस्यमयी शख्स को देखती जा रही थी।

वे दोनों हड्डियों के ढाँचे शिल्पी और अमन की ओर बढ़े पर अचानक से ही वे अपनी दिशा बदलकर शिवि और आँसू की तरफ बढ़ गए। आँसू की आँखे पथरा गयी थी, दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। सब अपने साथियों को मरते देख रहे थे। वह रहस्यमयी शख्स विचित्र मुस्कान लिए शिल्पी की ओर बढ़ा। हड्डियों का एक ढाँचा खट-कट की आवाज के साथ शिवि की ओर बढ़ता जा रही था वहीं दूसरा लहू में गिरी तड़प रही आंसू का पेट एक नुकीली हड्डी से चीर देता है और इसके साथ भी वही किया जो उसने केशव के साथ किया था। शिवि अपने दोस्तों को मरते देख पहले ही हिम्मत हार चुकी थी अतः उसने उस रहस्यमयी जीव के सामने घुटने टेक दिए वह हड्डियों का ढांचा उसके ऊपर गिर गया, उसकी सभी नुकीली हड्डियां शिवि के जिस्म को भेदकर बिखर गई। अमन और शिल्पी ने भी मान लिया कि उनका भी यही हश्र होगा। हड्डियों का वह ढाँचा अमन की ओर बढ़ा, वहीं उस रहस्यमयी 'जीव' शिल्पी की ओर हवा में तैरता हुआ बढ़ा, उसने शिल्पी को अपने स्याह ऊर्जा में बांधकर ऊपर उठा दिया। उसकी मुट्ठियां भींचती जा रही थी, शिल्पी अब भी उसे एकटक देखे जा रही थी, उसे अब भी यही लग रहा था उसने उस शख्स को कही देखा है। उसने उस रहस्यमयी शख्स को पहचान लिया, अब उसका हृदय अत्यधिक बेचैन हो गया। उसे अपने समक्ष जो हो रहा है उसपर यकीन ना करने का दिल हुआ, वह जागना चाही कि शायद कहीं यह कोई दुःस्वप्न तो नही परन्तु यह स्वप्न नही सत्य था। उसके सामने जो भी था वह पूर्णतया सत्य था।

"नही.. विस्तार! तुम ऐसा नही कर सकते! तुम ये नही हो विस्तार!" शिल्पी घुटे घुटे स्वर में बोली उसके स्वर में विशुद्ध मासूमियत थी, आँखों से आँसू छलछला रहे थे, इसलिए नही की वो मर रही है बल्कि इसलिए कि उसने ऐसा कभी नही सोचा था। निश्चय ही वह विस्तार था, और यह विस्तार वह नही था जिससे वह जान से ज्यादा प्यार करती थी। विस्तार के चेहरे पर विचित्र सा भाव आया फिर एक हल्की सी मुस्कान आयी और उसने अपने मुट्ठियों को भींच लिया। शिल्पी की गर्दन पर कसाव बढ़ने लगा अगले ही पल सांसों ने उसका साथ छोड़ दिया, उसका सिर एक ओर लटक गया। विस्तार अपनी मुट्ठी खोल देता है शिल्पी का मृत जिस्म नीचे रक्त में गिर गया।

वह ढाँचा अमन की ओर बढ़ा, अमन सरकता हुआ पीछे की ओर भागा, उसका जिस्म लहू से भीग गया था, वह लहू जो उसके साथियों का ही था। अचानक से एक तेज चमक हुई, इस ऊर्जा ने हड्डियों के उस ढाँचे को टुकड़ो में बिखेर दिया।

"मैं जानता था तुम कभी न कभी जरूर आओगे विस्तार! पर मैं तुम्हें कुछ भी नही करने दूंगा।" आगुन्तक का स्वर गूँजा, अमन उसे देखकर धीरे से मुस्कुराया।

क्रमशः….

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3 Comments

Kaushalya Rani

25-Nov-2021 10:08 PM

Beautiful part

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Farhat

25-Nov-2021 06:30 PM

Good

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🤫

07-Jul-2021 05:06 PM

फंटेस्टिक....!रहस्य और डर का रोमांच एक पल को तो लगा सभी के सभी मारे गए लेकिन एन्ड में आते आते एक और सस्पेंस....!!वेटिंग फ़ॉर नेक्स्ट

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